सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 39 बी की व्याख्या को लेकर गुरुवार (25 अप्रैल) को तीसरे दिन भी सुनवाई की। इस दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली बेंच ने सवाल उठाया कि क्या कंपनी अथवा निजी संपत्तियों को सामुदायिक संसाधन माना जा सकता है?
इस पर सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकट रमानी ने कहा, अनुच्छेद 39 बी हमेशा से सभी राजनीतिक और आर्थिक सिद्धांतों से स्वतंत्र रहा है। संसाधनों और जरूरतों के बारे में समाज की व्याख्या समय के साथ परिपक्व होती रहती है, ऐसे में अनुच्छेद 39 बी को आर्थिक चश्मे से देखना गलत होगा।
सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी दुबे ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट निजी संपत्ति को लेकर 1977 में रंगनाथ रेड्डी केस में आए जस्टिस कृष्णा अय्यर के फैसले की व्याख्या को लेकर सुनवाई कर रही है।
अनुच्छेद 39B में कहा गया है कि सरकार को सभी के भले के लिए सामुदायिक संसाधनों को उचित रूप से साझा करने के लिए नीतियां बनाने का अधिकार है। इसमें निजी स्वामित्व वाले संसाधन भी शामिल हैं।
केंद्र बोला- संविधान संशोधन के बाद भी उसमें मूल प्रावधान बरकरार रहते हैं
निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39B के तहत लाने के मुद्दे पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि जब संविधान में संशोधन करके उसकी जगह अन्य प्रावधान लाया जाता है तो मूल प्रावधान कायम रहता है या नहीं? इस पर केंद्र ने दलील दी कि मूल प्रावधान कायम रहता है।
CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि आप संपत्ति की पूंजीवादी अवधारणा से देखें तो यह विशिष्टता की भावना को बताती है। उन्होंने अपना पेन दिखाते हुए कहा, यह मेरा ही है। वहीं, समाजवादी अवधारणा संपत्ति की समानता की धारणा को बल देती है। यह कहती है कि कुछ भी व्यक्ति विशेष का नहीं है, बल्कि सारी संपत्ति समुदाय के लिए सामान्य है। यह घोर समाजवादी दृष्टिकोण है। आमतौर पर हम संपत्ति को ऐसी चीज मानते हैं, जिसे हम ट्रस्ट के तौर पर रखते हैं।