बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को 12 साल की रेप विक्टिम को अपनी प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने की अनुमति दी है। कोर्ट ने यह फैसला उसके कल्याण और सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए दिया। विक्टिम 25 हफ्ते की प्रेग्नेंट है। जस्टिस संदीप मार्ने और नीला गोखले की वेकेशन बेंच ने मेडिकल बोर्ड की तरफ से दाखिल की गई रिपोर्ट को देखकर फैसले में कहा परिस्थिति की गंभीरता को देखकर हमारे लिए नाबालिग लड़की की भलाई और उसकी सुरक्षा सर्वोपरि है।
मां ने बेटे के खिलाफ केस दर्ज कराया, बाल सुधार गृह भेजा गया
लड़की के साथ उसके अपने 14 साल के भाई ने रेप किया था। मई की शुरुआत में उसने अपनी मां से पेट दर्द की शिकायत की थी। जब मां उसे अस्पताल ले गई, तो उसकी प्रेग्नेंसी की जानकारी सामने आई। तब लड़की ने बताया कि जब घर पर कोई नहीं होता था तो उसका बड़ा भाई उसके साथ जबरदस्ती किया करता था।
उसने उसे डराया-धमकाया भी था कि अगर किसी को बताया तो वह उसे नुकसान पहुंचाएगा। मां की शिकायत के आधार पर बेटे के खिलाफ IPC और POCSO के तहत केस दर्ज किया गया है और उसे बाल-सुधार गृह भेज दिया गया है।
बेंच का निर्देश- प्रोसीजर के बाद लड़की को काउंसिलिंग देगा अस्पताल
बेंच ने अपने आदेश में कहा कि लड़की को बहुत बाद तक जानकारी नहीं थी कि वह प्रेग्नेंट है। मेडिकल बोर्ड ने साफ तौर पर कहा है कि इस प्रेग्नेंसी से मरीज के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। बेंच ने ये भी कहा कि प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन प्रोसिजर के बाद अस्पताल लड़की को काउंसिलिंग भी देगा। बेंच ने अस्पताल प्रबंधन को यह निर्देश भी दिया कि भ्रूण के टिश्यू सैंपल और DNA सैंपल रखेगा और क्रिमिनल ट्रायल के लिए इन्हें इन्वेस्टिगेटिंग अधिकारी को भेजेंगे।
प्रेग्नेंसी अबॉर्शन का नियम क्या कहता है
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट के तहत, किसी भी शादीशुदा महिला, रेप विक्टिम, दिव्यांग महिला और नाबालिग लड़की को 24 हफ्ते तक की प्रेग्नेंसी अबॉर्ट करने की इजाजत दी जाती है। 24 हफ्ते से ज्यादा प्रेग्नेंसी होने पर मेडिकल बोर्ड की सलाह पर कोर्ट से अबॉर्शन की इजाजत लेनी पड़ती है। MTP एक्ट में बदलाव साल 2020 में किया गया था। उससे पहले 1971 में बना कानून लागू होता था।
सुप्रीम कोर्ट ने 14 साल की प्रेग्नेंट रेप विक्टिम की प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन का फैसला पलटा
सुप्रीम कोर्ट ने 14 साल की रेप विक्टिम को 30 हफ्ते की प्रेग्नेंसी में अबॉर्शन की इजाजत देने वाला फैसला पलट दिया है। कोर्ट ने 22 अप्रैल को लड़की के अबॉर्शन की इजाजत दी थी। कोर्ट ने ये फैसला लड़की के माता-पिता के अनुरोध के बाद पलटा।
लड़की के पेरेंट्स ने कहा कि इस प्रोसिजर से उनकी बेटी की जिंदगी को खतरा हो सकता है। उन्होंने ये भी कहा कि हम बच्चे को पालने के लिए तैयार हैं। पेरेंट्स से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बात करने के बाद CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि बच्चे का हित सबसे ऊपर है।
सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल को मुंबई के लोकमान्य तिलक अस्पताल को तत्काल अबॉर्शन के लिए इंतजाम करने का आदेश दिया था। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने आदेश सुनाते हुए कहा था- हम अबॉर्शन की इजाजत इसलिए दे रहे हैं, क्योंकि यह असाधारण मामला है। हर घंटा विक्टिम के लिए अहम है।
बेंच ने मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि प्रेग्नेंसी जारी रखने से विक्टिम की मेंटल और फिजिकल हेल्थ पर असर पड़ेगा। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अबॉर्शन कराने में थोड़ा रिस्क तो है, लेकिन प्रेग्नेंसी जारी रखने में और भी बड़ा रिस्क है।